कवि बिहारी की काव्य-कला ( Kavi Bihari Ki Kavya Kala )

कवि बिहारी की काव्य-कला

बिहारी रीतिकाल के प्रसिद्ध कवि हैं | रीतिसिद्ध काव्य-परंपरा के यह सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं | इनकी एक मात्र रचना ‘बिहारी सतसई’ है जिसमें 713 दोहे हैं | कवि बिहारी की काव्य-कला का विवेचन भाव पक्ष और कला पक्ष इन दो दृष्टिकोणों से किया जा सकता है |

कवि बिहारी का भाव पक्ष या अनुभूति पक्ष ( Kavi Bihari ka Bhav Paksh ya Anubhuti Paksh )

कवि बिहारीलाल की अनुभूतिगत ( भावगत ) विशेषताएं निम्नलिखित हैं —

1️⃣ संयोग वर्णन — बिहारी के काव्य का मूल विषय श्रृंगार है | कवि बिहारी ने श्रृंगार के संयोग तथा वियोग दोनों पक्षों का सुंदर वर्णन किया है लेकिन संयोग श्रृंगार में उन्हें अधिक सफलता मिली है | संयोग श्रृंगार के अंतर्गत कवि बिहारी ने नायिका का रूप सौंदर्य, नख-शिख वर्णन, हाव-भाव, वेशभूषा आदि का प्रभावशाली वर्णन किया है | यथा —

कहत , नटत , रीझत , खीझत , मिलत , खिलत , लजियात ।भरै भौन मैं करत हैं , नैननु हीं सौं बात ॥

2️⃣ वियोग वर्णन — यह सही है कि कवि बिहारी ने श्रृंगार के संयोग तथा वियोग दोनों पक्षों का सुंदर वर्णन किया है परंतु वियोग वर्णन में उनको उतनी अधिक सफलता नहीं मिली | अनेक स्थलों पर उनका वियोग वर्णन ऊहात्मक है | उनका वियोग वर्णन अतिशयोक्तिपूर्ण प्रतीत होता है | यही कारण है कि उनके वियोग वर्णन में सहजता नहीं रहती | लेकिन कहीं-कहीं वियोग वर्णन के बड़े सुंदर उदाहरण भी मिलते हैं | यथा —

लाल तुम्हारे विरह की अगनि अनूप , अपार ।
सरसे बरसैं नीर हूँ , झर हूँ मिटै न झार ॥

3️⃣ विषयगत विविधता — कवि बिहारी के काव्य में विषयगत विविधता मिलती है | श्रृंगार के अतिरिक्त उनके काव्य में भक्ति, नीति, चिकित्सा, ज्योतिष, गणित आदि विषयों पर भी फुटकर दोहे मिलते हैं | उन्हें शास्त्रों एवं लोक-व्यवहार का भी व्यापक ज्ञान था | उनके दोहों में लोक-संस्कृति, तीज त्योहार, खेल-मनोरंजन के अनेक तत्वों जैसे होली, बसंत, पतंगबाजी,कबूतरबाजी, चौगान, लोकगीत, लोक नृत्य आदि का भी सुंदर वर्णन मिलता है | उनकी बहुज्ञता के कारण ही उनके विषय में एक आलोचक ने कहा है —

करी बिहारी सतसई भरी अनेक स्वाद |

4️⃣ भक्ति और नीति — बिहारी भक्त कवि थे | उनके आराध्य श्री कृष्ण थे | उनको प्रसन्न करने के लिए वे श्री राधा की भी वंदना करने लगे | अनेक स्थलों पर वे श्रीकृष्ण की शरण प्राप्त करने के लिए आतुर नजर आते हैं | एक स्थल पर भगवान श्री कृष्ण को उपालम्भ देते हुए वे कहते हैं —

नीकी दई अनाकनी, फीकी परि गुरिरि |

तज्यौ मानौ तारन-बिरहु, बारक बारनु तारि ||

भक्ति के साथ-साथ कवि बिहारी ने नीतिपरक दोहे भी लिखे हैं | इन दोहों को पढ़ने से पाठक प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता क्योंकि ऐसे दोहों से हमें लोक-व्यवहार संबंधी अनेक बातें जानने को मिलती हैं जो हमारे लिए जीवनोपयोगी होती हैं | एक स्थान पर कवि बिहारीलाल जी धन-संपत्ति और मानव-jvमन की समता का वर्णन करते हुए लिखते हैं —

बढ़त-बढ़त संपत्ति सलिलु मन सरोजु बढ़ि जाइ |

घटत-घटत सु न फिरि घटै, बरु समूल कुम्हिलाइ ||

5️⃣ प्रकृति वर्णन — अन्य रीतिकालीन कवियों की भांति बिहारी के काव्य में भी सुंदर प्रकृति वर्णन मिलता है | उनकी रचना ‘बिहारी सतसई’ में प्रकृति वर्णन से संबंधित अनेक दोहे मिलते हैं | उनके काव्य में प्रकृति के आलंबनगत और उद्दीपनगत दोनों रूपों का वर्णन मिलता है | जेठ माह की दुपहरी का वर्णन करते हुए वे लिखते हैं —

बैठी रही अति सघन बन, बैठि सदन-तन माँह |

देखि दुपहरी जेठ की , छाँहौं चाहति छाँह ॥

एक अन्य स्थान पर ग्रीष्म ऋतु की भयंकरता का वर्णन करते हुए वे लिखते हैं —

कहलाने एकत बसत अहि मयूर मृग बाघ |

जगतु तपोवन सौ कियौ दीरघ-दाध-निदाध ||

कवि बिहारी का कला पक्ष या अभिव्यक्ति पक्ष ( Kavi Bihari Ka Kala Paksh Ya Abhivyakti Paksh )

कला पक्ष के दृष्टिकोण से कवि बिहारी रीतिकाल के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं | उन्होंने अपने काव्य में साहित्यिक ब्रजभाषा का प्रयोग किया और ब्रज भाषा को अपने चरम शिखर पर पहुंचाया | उन्होंने अपनी भाषा में तत्सम तद्भव देशज विदेशी प्राकृत अपभ्रंश अरबी-फ़ारसी तथा अन्य भाषाओं के शब्दों का सुन्दर व स्वाभाविक प्रयोग किया | उनकी भाषा में मुहावरों तथा लोकोक्तियों का भी सुंदर प्रयोग मिलता है |

‘बिहारी सतसई’ का अध्ययन करने पर उनके कला पक्ष की निम्नलिखित विशेषताएं उभर कर सामने आती हैं : —

1️⃣ काव्य गुण — कवि बिहारी ने मुख्यत: श्रृंगारपरक काव्य लिखा है लेकिन उनके काव्य में भक्ति व नीति संबंधी दोहे भी मिलते हैं | यही कारण है कि उनके काव्य में मुख्य रूप से प्रसाद व माधुर्य गुणों का प्रयोग हुआ है | ओज गुण का उनके काव्य में सर्वथा अभाव है | ‘बिहारी सतसई’ में ओज गुण के बहुत कम उदाहरण मिलते हैं |

प्रसाद गुण का एक उदाहरण देखिए —

जपमाला, छापा, तिलक सरै न एकौ कामु |

मन काँचै नाचै वृथा, साँचै राँचै रामु ||

माधुर्य गुण का एक उदाहरण देखिए —

या अनुरागी चित्त की गति समुझै नहिं कोइ |

ज्यौं-ज्यौं बूडै स्याम रंग, त्यौं-त्यौं उज्जलु होइ ||

2️⃣ शब्द-शक्ति — शब्दों में निहित अर्थ का बोध कराने वाली शक्ति शब्द-शक्ति कहलाती है | शब्द-शक्ति के तीन प्रकार होते हैं – अभिधा, लक्ष्णा तथा व्यंजना | बिहारी के काव्य में उपर्युक्त तीनों ही शब्द-शक्तियों का सुंदर प्रयोग मिलता है |

उनके काव्य में प्रयुक्त व्यंजना शब्द-शक्ति का एक उदाहरण देखिए —

कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात |

भरे, भौन में करत हैं नैननु ही सौं बात ||

3️⃣ अलंकार, छंद व बिम्ब — कवि बिहारी ने अपने काव्य में अलंकारों, छंदों व बिम्बों का सुंदर व स्वाभाविक प्रयोग किया है | अलंकार प्रयोग के प्रति कवि बिहारी का एक विशेष आकर्षण रहा है | किसी विद्वान ने कहा है कि कहीं-कहीं तो उनके एक ही दोहे में सोलह से अधिक अलंकारों का प्रयोग देखा जा सकता है | यद्यपि उनके काव्य में अनेक प्रकार के शब्दालंकार और अर्थालंकार मिलते हैं परंतु फिर भी उनके प्रिय अलंकारों में अनुप्रास, यमक, श्लेष, वक्रोक्ति, पुनरुक्ति प्रकाश, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का नाम लिया जा सकता है |

छंदों के दृष्टिकोण से कवि बिहारी के काव्य में विविधता के दर्शन नहीं होते | उन्होंने अपनी एक मात्र रचना ‘बिहारी सतसई’ में केवल दो छंदों – दोहा व सोरठा का प्रयोग किया है | दोहा उनका प्रिय छंद है तथा ‘बिहारी सतसई’ का अधिकांश भाग इसी छंद में लिखित है |

कवि बिहारी के दोहों में गागर में सागर भरने का अद्भुत सामर्थ्य है | इस दक्षता का प्रमुख कारण उनकी बहुज्ञता, लोक संस्कृति का ज्ञान तथा जीवनानुभव है | भाषा की समास-शक्ति के प्रयोग में वे दक्ष हैं | उनके अनेक दोहे ऐसे हैं जो संक्षेप में ही बहुत कुछ कह जाते हैं |

कहत , नटत , रीझत , खीझत , मिलत , खिलत , लजियात ।

भरै भौन मैं करत हैं , नैननु हीं सौं बात ॥

उनके दोहों के विषय में प्रचलित है —

“सतसैया के दोहरे, ज्यों नावक के तीर |

देखन में छोटे लगै, घाव करें गंभीर ||”

कवि बिहारी ने अपने काव्य में अमूर्त भावों को मूर्तता प्रदान करने के लिए अनेक ऐन्द्रिक व अनुभूतिपरक बिम्बों का प्रयोग किया है | ऐन्द्रिक बिंबो में दृश्य बिंब उनका सर्वाधिक प्रिय बिंब है |

उपर्युक्त विवेचन के आलोक में कहा जा सकता है कि कला-पक्ष एवं भाव-पक्ष दोनों ही दृष्टिकोण से उनका काव्य उच्च कोटि का है | वे निर्विवादित रूप से रीतिकाल के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि कहे जा सकते हैं |

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